शौचालय की कमी के आधार पर फिल्म बना रहे राकेश ओमप्रकाश मेहरा वास्तव में उन झोपड़ियों में शौचालय बना रहे हैं जहां वह शूटिंग कर रहे है।
फिल्मकार जो अपनी अगली फिल्म “मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर” को घाटकोपर की एक झुग्गी बस्ती में फिल्मा रहे है अब जन्हें शहर के नागरिक निकाय से एनओसी मिल गयी है, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) वहां 20 शौचालयों का निर्माण करने जा रहे है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए पांच अलग शौचालय शामिल हैं, और खंडोबा क्षेत्र के दो नगरपालिका स्कूलों में शिक्षकों का भी इंतज़ाम किया गया है। साथ ही एक सामुदायिक शौचालय का भी एक फिर से निर्माण कर रहे हैं।
फिल्म निर्माता, जिन्हें रंग दे बसंती और भाग मिल्खा भाग जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है, पिछले चार सालों से गैर-सरकारी संगठन युवा अनस्टॉपबल के साथ मिलकर काम कर रहे है।
जब इस विषय पर उनसे सवाल किया गया, तो इस बात पर जोर देते हैं कहा कि उनका योगदान “सागर में एक बूंद भी नहीं है”। हम सिर्फ शौचालय का निर्माण कर वहाँ से चले नही जाते, लेकिन हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि स्थानीय लोग व्यवस्तिथ तरीके से उसकी देख-रेख भी करे। हम क्षेत्र के झुग्गी-झोपड़ियों और नगरसेवकों के साथ बैठक कर रहे हैं, जिसमे हम उन्हें एक रुपया दान देने के लिए कह रहे है ताकि समुदाय के कर्मचारियों को उनके बकाया दे सकें। साबरमती आश्रम में गांधी के आदर्श शौचालयों से प्रेरित हो कर अब तक 800 शौचालयों पर निर्माण कर चुके मेहरा ने कहा कि,”नए शौचालय निजी इमारतों जितने अच्छे है उचित पाइपलाइन और एक्सटेंशन नल के साथ वे स्वच्छ पेयजल प्राप्त कर सकते हैं।” “झुग्गी निवासियों के पास टीवी सेट और मोबाइल फोन हैं लेकिन कोई शौचालय नहीं है और ऐसे में मानसून के दौरान रेलवे ट्रैक पर शौच करने पर मजबूर हो जाते है। मुझे याद है कि मिरर में मैंने एक ऐसी महिला के बारे में पढ़ा थे, जो पटरियों पर शौच करते समय रेल दुर्घटना का शिकार हो गयी थी, तो मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया कि, ‘क्या शौच का मूल्य जीवन से ज़्यादा है?”
राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अब पवई झील के पीछे एक झुग्गी बस्ती में शूटिंग कर रहे है, जहां शौचालय के लिए पुरुषों को एकमात्र पाइपलाइनों के पास जाना पड़ता है।
मेहरा ने कहा कि, “अधिकतम शहर एक स्पंज की तरह आप्रवासियों को अवशोषित कर रहा है, जबकि इसके बुनियादी ढांचे को समान गति से नहीं बढ़ पाया है। इस क्षेत्र में पानी दिन में सिर्फ 30-45 मिनट के लिए आता है। हम इस क्षेत्र में पर्याप्त शौचालय बनाने की भी योजना बना रहे हैं।”
उनकी फिल्म एक मुंबई की झोपड़ी में रह रहे चार बच्चों के चारों ओर घूमती है। उनमें से एक बच्चा अपनी मां के लिए शौचालय बनाना चाहता है और इसलिये प्रधान मंत्री से अपील करता है।
मेहरा की सबसी बड़ी बाधा यह थी कि शहर की झोपड़ियां बीएमसी के स्वामित्व वाली अनधिकृत भूमि पर बनाई गई हैं, और इसिलए वे कानूनी रूप से वहाँ शौचालय नहीं बना सकें क्योंकि वहां नाही कोई पाइपलाइन है या नाही पानी उपलब्ध है।
“लेकिन मैं इसके आसपास सामुदायिक स्तर पर काम कर रहा हूं,” इस बात का भरोसा देते हुए निर्देशक ने कहा कि वह एक सामाजिक कार्ड पेश करने की योजना बना रहे है, जिससे किसी विशेष व्यक्ति खास तौर पर गृहिणिया समुदाय के लिए प्रति दिन दो घंटा सामाजिक कार्य को दे सके। ये घंटे एक उपलब्धि के लिए बड़ा योगदान साबित हो सकते है।
“मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर” के साथ, राकेश मुख्य रूप से झुग्गी जिंदगी पर ध्यान केंद्रित कर एक पूरी तरह से अलग फ़िल्म के साथ आ रहे हैं।
और इस अविश्वसनीय फ़िल्म को देखना दर्शकों के लिए किसी भव्य व्यवहार से कम नहीं होगा!