विश्व की बड़ी मीडिया कंपनी ‘वाइस’ ने खरीदी भारत कि फिल्म ‘मामूली आदमी’
विश्व की बड़ी मीडिया कंपनी ‘वाइस’ ने इस फिल्म को दुनिया भर में रिलीज करने के लिए खरीद लिया है। 50 से ज्यादा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में छाई रही ये फिल्म 17 नवंबर को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में धाक जमाने वाली डॉक्यूमेंट्री फीचर “एन इनसिग्निफिकेंट मैन” (अर्थ – एक आम/मामूली आदमी) के अधिकार प्राप्त करने के साथ ही ‘वाइस डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स’ ने अपनी पहली फिल्म खरीदने की घोषणा कर दी है। खुशबू रांका और विनय शुक्ला ने “एन इनसिग्निफिकेंट मैन” को डायरेक्ट किया है जो एक नॉन-फिक्शन पोलिटिकल थ्रिलर श्रेणी की फिल्म है। इसमें एक सामाजिक कार्यकर्ता से ध्रुवीकृत कर देने वाले चर्चित राजनेता के तौर पर अरविंद केजरीवाल के चमत्कृत करने वाले उभार को दिखाया गया है। इसे एक ‘मास्टरपीस’ बताते हुए वाइस ने घोषणा की है कि वो निर्माता आनंद गांधी की मेमेसिस लैब के साथ भागीदारी करेंगे और इस फिल्म को भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करेंगे।
वाइस दुनिया के सबसे बड़े मीडिया कंपनियों में से एक है जो 2013 से अब तक 100 करोड़ डॉलर से ज्यादा का धन जुटा चुकी है। नेटफ्लिक्स और एमेज़ॉ़न जैसी मीडिया कंपनियां मोटे तौर पर पैसा लेकर वीडियो सेवा देती हैं। वहीं वाइस ऐसी अभूतपूर्व डिजिटल मीडिया और प्रसारण कंपनी है जो बहादुरी से और कहानी कहने के मौलिक अंदाज के साथ उन वैश्विक मसलों को लोगों के सामने लाती है जिन्हें पारंपरिक मीडिया अकसर दरकिनार कर देता है।
“एन इनसिग्निफिकेंट मैन” हाल ही में चर्चा में थी जब सेंसर बोर्ड के पूर्व-प्रमुख ने इस फिल्म को बनाने वालों से कहा था कि वे जाकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य राजनेताओं से मंजूरियां लेकर आएं। इस विडंबना के उलट, इसी फिल्म को अंतरराष्ट्रीय फिल्ममेकिंग समुदाय और वाइस के वरिष्ठ अधिकारियों ने पलकों पर बैठाया। ख़ैर, अंत में अपने मिसाल स्थापित करने वाले आदेश में फिल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण (FCAT) ने सेंसर बोर्ड की ‘असंवैधानिक’ मांग को रद्द कर दिया और इस फिल्म को अपनी संपूर्णता में पास कर दिया। इस बहुप्रतीक्षित फिल्म को बनाने वाला स्टूडियो मेमेसिस लैब अब 17 नवंबर को इसे भारत भर में रिलीज करेगा।
इस फिल्म को लेकर वाइस डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स के कार्यकारी निर्माता जेसन मोज़ीका ने कहा, “मैंने एन इनसिग्निफिकेंट मैन को पहली बार 2016 में टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (TIFF) में देखा था और जब लौटा तो सोच रहा था कि मार्शल करी की फिल्म ‘स्ट्रीट फाइट’ के बाद गली-मुहल्ले के स्तर की राजनीति को लेकर बनी ये बेस्ट डॉक्यूमेंट्री है।” उन्होंने बताया, “हम वाइस के लोगों ने इसके फिल्ममेकर्स और पिछले कुछ महीनों में सेंसर बोर्ड के खिलाफ इनके संघर्ष पर करीब से नजर रखी है। अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए लड़ रहे ऐसे स्वतंत्र फिल्ममेकर्स को वाइस हमेशा समर्थन देगा और अभी हम इस फिल्म को अपने पूरा वैश्विक मंच उपलब्ध कर रहे हैं। हम दुनिया भर के अपने दर्शकों तक एन इनसिग्निफिकेंट मैन लेकर आ रहे हैं क्योंकि हमारा सोचना है कि हर वो इंसान जो अपनी राजनीतिक व्यवस्था में समस्याएं देखता है और उसमें ख़ुद शामिल होकर चीजें बदलने की कोशिश करना चाहता है ऐसे सब लोगों के लिए ये बहुत ही प्रासंगिक फिल्म है।”
फिल्म के मेकर्स और वाइस के बीच हुए करार की शर्तों का खुलासा अभी नहीं हुआ है लेकिन इस अधिग्रहण का मतलब यही है कि फिल्म को 22 से ज्यादा देशों के सिनेमाघरों, टेलीविजन और डिजिटल चैनलों पर दिखाया जाएगा।
आनंद गांधी ने इस सिलसिले में कहा, “भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार एक फिल्म हूबहू दिखाएगी कि एक राजनीतिक दल में बंद दरवाज़ों के पीछे क्या होता है। जब नॉन-फिक्शन श्रेणी में गंभीर काम की बात आती है तो वाइस ने इस तरह की फिल्मों और वीडियो के बाज़ार का नेतृत्व ही किया है। वे जो भी करते हैं निर्भय होकर करते हैं। और ऐसे प्रेरणादायक अंतरराष्ट्रीय भागीदार का साथ होना हमारे लिए बहुत उत्साहित करने वाली बात है। इस नवंबर, भारत में इस फिल्म को लोगों के बीच लाकर हम चीजों की शुरुआत कर देंगे।”
दुनिया के 50 से ज्यादा जाने-माने फिल्म महोत्सवों में “एन इनसिग्निफिकेंट मैन” दर्शकों की चहेती रही है। मुंबई में जब मामी फिल्म फेस्टिवल में इसे दिखाया गया तो लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाईं। सनडांस, स्काइवॉकर लैब, बेर्था फाउंडेशन जैसे कई प्रतिष्ठित संगठनों ने इस फिल्म को समर्थन दिया है। इस फिल्म के साथ एक खास बात ये भी है कि भारत में इसे लेकर बहुत बड़ा क्राउडफंडिंग कैंपेन चलाया गया था जिसमें अनजान लोगों ने इस फिल्म को बनाने के लिए धन दिया था।
इस 95 मिनट लंबी फिल्म को, दरवाजों के पीछे होने वाली राजनीतिक गतिविधियों की 400 घंटे लंबी सच्ची फुटेज में से बहुत ही कड़ी मेहनत से निकालकर बनाया गया है जिसे एक साल की अवधि में शूट किया गया था। ये फिल्म हमें चुपके से उन गर्मा-गर्म बहसों, अंदरूनी चुटकुलों, अभियानों की रणनीतियों, सच्ची घटनाओं और विचारधाराओं के बीच ले जाती है जहां भारत की सबसे नई पोलिटिकल पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) का जन्म होता है।